हमारा - तुम्हारा रिश्ता
था जबरदस्ती का
घरवालों की मर्जी थी
नहीं मेरी चलती थी
बांध दिया
ब्याह के बंधन में
पसंद - नापसंद का नहीं कोई सवाल
वह अलग जमाना था
न देखना न सुनना
बस जीवन भर के लिए बंध जाना
तब लगता था विचित्र
आज लगता है उचित
प्रेम का परवान चढता है धीरे-धीरे
हर पल हर क्षण सीखता - सिखाता
संबंधों को मजबूत बनाता
इतना मजबूत कि वह टूटता नहीं
जो कभी मजबूर वह आज मजबूत
अब महसूस होता है कभी-कभी
जो हुआ वही सही
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