दो पहर बीत गया
तीसरा चल रहा है
दो कैसे बीते
पता नहीं चला
बाधा आई
पार हुई
जोश - खरोश था
उमंग - उत्साह था
सहनशीलता - धीरता थी
अब तीसरे में धीरे-धीरे सब ढल रहा है
पहले जहाँ निडर
अब वही डर रहा है
चिंता है चौथे पहर की
अभी तो ढलान शुरू हुई
आगे का क्या ?
कैसा रहेगा
कैसे बीतेगा
किसके सहारे
सब क्षीण हो रहा है
सारी शक्ति
देह और मन
इसमें उलझा है सब
जिनके लिए किया जतन सारा
वही हो गए बेगाने
अपने मे हुए मशगूल
जिनके लिए थे कभी पल - पल हम मजबूर
पालन - पोषण , शिक्षा - दीक्षा
अपने को भूल इसी में लगे रहे हम
वही छोड़ गए हमें
अब तो है उसका ही भरोसा
अंत समय में वही याद आता है हमेशा
बस ईश्वर का ही है सहारा
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