मैं पुत्र हूँ तुम्हारा
किसी का पति
किसी का पिता भी हूँ
यह तुम समझा करों माँ
पुत्र धर्म निभाने के साथ-साथ
अपना कर्म धर्म भी निभाना है
वह पत्नी जिसने सपने संजोये हैं
वह पूरा करना है
वह पुत्र जिसका भविष्य सुरक्षित करना मेरी जिम्मेदारी
अपना सारा समय केवल तुम्हें ही कैसे दे सकता हूँ
औरों का भी उतना ही हक है
मैं तो एक हूँ
पर कई बंधनों में बंधा हूँ
अपेक्षा सभी की मुझसे
खरा उतरने की कोशिश भी करता हूँ
एक को खुश करू तो दूसरा नाराज
यह नजारा हर रोज किसी न किसी रूप में सामने
कभी कोई मेरी नजर से भी देखें
मेरी जगह अपने को रखकर देखें
मुझे समझने की कोशिश करें
मैं सामान्य इंसान हूँ
सुपर पावर नहीं
समझदार केवल मुझे ही नहीं बनना
सबको बनना है
वह फिर माँ हो
पत्नी हो
पुत्र - पुत्री हो
परिवार के अन्य सदस्य हो
मैं बेटा तो हूँ
साथ साथ बहुत कुछ हूँ
सबका मान - मनौवल करते - करते
मेरा ही मन कहीं खो रहा
जीता हूँ पर कैसे
यह तो मैं ही जानता हूँ
सबका भार लेकर चलता हूँ
तब भी बात सुनता हूँ
भार और बात
इसीमें हर रोज पीसता हूँ मैं
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