मैंने रास्ता पूछा
रास्ते में तरह तरह के लोग मिले
कुछ ने ना में सर हिलाया
कुछ ने मुंह बिचकाया
कुछ ने घूरा
कुछ ने उल्टा-पुल्टा बोला
कुछ ने गलत बताया
कुछ ने कहा
बस इतनी ही दूर
बस कुछ ही मिले
जो सही बतला पाएं
खुशी से राह दिखाया
पूछते - पाछते
आखिरकार हम अपनी मंजिल पर आ ही गए
कभी-कभी भटक गएँ
कभी मायूस हो गएँ
कभी खिन्न हो गएँ
कभी वापस लौटने की सोच लिएं
न जाने कितने कितने पडाव पार किएं
तब जाकर रास्ता मिला
हम अपनी मंजिल पर पहुंचे
तब समझ में आया
मंजिल इतनी आसानी से नहीं मिलती
तरह-तरह की रुकावटें - बाधाएं
उन सबको पार करें
तभी तो वहाँ तक पहुँचे ।
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