एक ही घर होता है
जो अपना लगता है
जहाँ कोई रोक टोक नहीं होती
समय का बंधन नहीं होता
जब चाहे आओ
जब चाहे जाओ
जैसे चाहो रहो
अपना ही अधिकार होता है
कोई औपचारिकता नहीं
अपनी ही धौंस
अपना ही रूआब
जैसे मालिक हम ही है
टेलीविजन और पलंग पर हमारा अधिकार
कमरा भी हमारा
जिसका घर उसी को कहते
अभी जाओ इस कमरे से
मुझे परेशान मत करों तुम लोग
खाने में ना - नुकुर
हर जिद पूरी करवाने को आतुर
वह घर हमेशा हमारी राह देखता है
पलक - पावडे बिछाए रहता है
खाना खिलाएं बिना जाने नहीं देता
जितनी बार भी आओ
चेहरे पर शिकन नहीं
मुस्कराहट होती है
घर किसी और का होता है
मर्जी हमारी चलती है
वह होता है पिता का घर
वह घर भी तब तक जब तक पिता की चलती है
जब तक माँ होती है
माँ से ही मायका होता है
बाद में तो वह अपना होते हुए भी अपना नहीं होता
एक सराय सा होता है
जहाँ हर चीज की सीमा होती है
बंधन होता है
अधिकार की बात तो दूर
सही बात बोलने से भी डर लगता है
कोई नाराज हो गया
तो यह घर भी छूट जाएंगा
संबंधों को संभालना पडता है
क्योंकि माता - पिता का स्थान तो कोई ले ही नहीं सकता
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