Sunday, 3 January 2021

फिर भी वह बात नहीं रही

ऑखें तो वही है
जो पहले थी
घंटों पढती रहती थी
देखती रहती थी
फिर भी नहीं थकती थी

पैर भी वही है
जो घंटों चला करते थे
चला क्या दौड़ा करते थे
रेल और बस पकडने की होड लगाते थे
फिर भी नहीं थकते थे

हाथ भी वही है
जो न जाने कितने काम करते थे
क्या - क्या लिखते रहते थे
घर से बाहर तक
फिर भी नहीं थकते थे

कान भी वही है
जो दूर की भी आहट सुन लेते थे
शोर - शराबे में भी नहीं घबराते थे
रात - दिन की ध्वनि
फिर भी नहीं थकते थे

वाणी भी वही है
न जाने कितना बोलती थी
घंटों बक बक करती थी
फिर भी नहीं थकती थी

पेट भी वही है
न जाने कितना और क्या - क्या खाते थे
चटर' मटर सब पचा जाते थे
सब हजम करता था
फिर भी नहीं थकता था

हम भी वही
शरीर भी वही
फिर भी वह बात नहीं
यह चेहरे की झुर्रियां
बहुत कुछ बयां करती है
यह वे लकीरे हैं
जिस पर वक्त के निशां है
वह भी एक वक्त
यह भी एक वक्त है
वहीं अर्जुन वहीं गांडीव
भीलों ने छीन ली
बडे बडे सिकंदर धराशायी हो गए

हमारा जमाना हमेशा हमारा नहीं रहता
वह भी बदल जाता है
सब कुछ वही
हम भी वही
फिर भी वह बात नहीं रही

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