आज उसने सब हासिल कर लिया है
नाम , शोहरत , घर - संपत्ति
सब अपनी मेहनत के बदौलत
याद आता है वह मंजर
ससुराल की प्रथम रात को महिलाओं के झुंड में बिठा दिया
गाना गाने को कहा
ढोलक बजाने को कहा
नाचने को कहा गया
इन सब से तो उसका दूर से भी रिश्ता नहीं था
वह नचनिया और गायिका थोड़े ही थी
फुसफुसाकर सब कहने लगी
कुछ आता नहीं है
फिर सुबह पूछा गया
सीना - कढाई करना आता है क्या
बडी नन्द तो कुछ सीने को भी दे गई
मेरे गुणो का पता करना था
साधारण सिलाई बखिया - तुरपाई आती थी
कढाई और कशीदाकारी नहीं
अब पेटीकोट और ब्लाउज सीना मेरी फितरत में नहीं
दर्जी तो थी नहीं
न मैंने होमसांइस में डिग्री ली थी
सुई - धागा से ज्यादा कलम और किताब प्यारी थी
फिर कहा गया
कुछ आता नहीं है
ऐसी पढाई से क्या फायदा
अब आई पाक कला की बारी
उसका तो यह हाल
घर में नहीं दाने , बूढ़ा चली भुनाने
सामग्री का अभाव
न तेल न मसाला
न लौना न लकड़ी
ख्वाब है बडे बडे
खाना है मालपुआ और खीर
बैठा दिया चूल्हे पर
अब मैं रसोइया तो थी नहीं
जो स्वादिष्ट सुस्वादु भोजन बनाती
सबकी अपेक्षा पर खरी उतरती
बेसहूर हैं
कुछ काम की नहीं है
आए दिन बुढियो की महफिल जमती
फिर जम कर चर्चा होती
हंसी और ठट्ठा उडाया जाता
मैं मुकदर्शक बनी रहती
लगता बेकार की डिग्री ली है
बेकार की पढाई की है
बुढ़िया आजी की आवाज कानों में गूंजती
का होई खांची भर पढ - लिखकर
चूल्हा ही फूंके के बा
दिमाग सब सुन सुनकर चकरा जाता था
अपने को नगण्य समझने लगी थी
सब सिद्ध करने में लगे थे
मैं किसी लायक नहीं
ऊपर से मेरा रूप रंग
न गोरी चिट्टी
न पतली लंबी
सुंदरता के मायनों पर खरी नहीं उतरती थी
इन सबके सामने पढाई बेकार थी
कोई उपाय न देख
उस पढाई को ही हथियार बनाया
अपनी क्षमता का लोहा मनवाया
स्वयं खडी हुईं पैरों पर
स्वयं को सिद्ध किया
आज किसी की बात याद आती है
कर बहियां बल आपनी
छोड पराई आस
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