जी चाहता है
सारे बंधन तोड़ डालू
मुक्त हो जाऊं
वह कैसा भी बंधन हो
प्रेम का हो
ममता का हो
या अन्य कोई
बंधन तो बंधन ही है
व्यक्ति बंध जाता है
निकलना चाहकर भी न निकल पाता है
स्वतंत्रता का एक अपना ही अंदाज
मुक्त हो उडान भरता है
जो जी चाहे वह करता है
जिस बंधन में बंधे हैं
वह तो एक दिन टूटना ही है
जब जाएंगे वहाँ
पूर्ण स्वतंत्रता के साथ
तब अभी क्यों नहीं
छटपटाहट से भली मुक्ति
No comments:
Post a Comment