गाय हमारी माता है
यह हम बचपन से पढते आ रहे हैं
वह दूध तो देती ही है
घी , दही - माठा , खोया - पनीर
उसके अलावा गोबर तथा अन्य रूप से भी उपयोगी
छत्तीस कोटि देवताओं का निवास
वह हमेशा से ही पूज्य रही है
हिंदू धर्म की तो गाय के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती
सनातन धर्म में पूजनीय है
आज वह बात नहीं रही
भावना लुप्त हो रही है
मनुष्य की आदत है जिससे लाभ होगा
उसी से नाता रखेंगा
पहले खेतों में बैल की जोतने के लिए जरूरत पडती थी
आज ट्रेक्टर आ गया है
तब उसकी जरूरत नहीं पड रही
दूसरी तरफ गाय जब तक दूध देती है तब तक उपयोग
अन्यथा उसकी देखभाल भारी लगती है
जब घर के बुजुर्गों की हालत पर ध्यान नहीं जाता
तब गाय तो पशु है
उसे माता कहा जाता है पर वह जन्म देनेवाली माता तो नहीं है
उसे छोड़ दिया जा रहा है दर - दर भटकने के लिए
डंडा पड रहा है
झुंड की झुंड गाएँ किसान की खडी फसल नष्ट-भ्रष्ट कर डाल रही है
कानून का भी लोगों में डर
अब समय ऐसा आ गया है कि पंडित भी गाय दक्षिणा में लेने से मना कर रहे हैं
सरकार की जिम्मेदारी है तो बनती है
कुछ रास्ता निकाला जाएं
गौ माता की समुचित व्यवस्था की जाएं
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