साबरमती की गोद में समा गई एक बेटी
हंसते मुस्कराते
अपना गम छिपाते
उस मुस्कान के पीछे को पीडा
दिल को कचोट गयी
एक बेटी जान देने को मजबूर हो गई
माँ - बाप विवश हो गए
अपने कलेजे के टुकड़े को बचा न पाएं
उसने भी तो बात नहीं मानी इनकी
टूट गयी थी दिल से बेचारी
करती क्या
और कुछ न सूझा
इस पीड़ा से उबरने का
जाते - जाते भी वह सबको समझा गयी
अब भी समाज को समझ आ जाएं
बेटी को ही अपराधी न समझे
पति ने छोड़ दिया
तिरस्कार किया
गुनाह किसी ने सजा किसी ने
जब जब आयशा का हंसता - मुस्कराता चेहरा नजर आएगा
उस चेहरे के पीछे की पीड़ा को अनुभव करना होगा
यह बेटी किसी की भी हो सकती है
मजबूर न हो जाएं
समाज के डर से
आलोचना के डर से
कुछ नहीं कर सकता यह समाज
पर नजरिया तो बदल सकता है
किसी पर तोहमत लगाने से पहले सोच तो सकता है
किसी की बेटी को सम्मान से जीने तो दे सकता है
मत मदद करें
बस उसको उसके घर में जीने दे
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