मैं नारी हूँ
अबला नहीं सबला हूँ
मुझे सहानुभूति नहीं अनुभूति चाहिए
मुझे समझने वाला चाहिए
मैं भगवान बुद्ध नहीं बन सकी
बनना भी नहीं था
अगर मैं उस राह पर जाती तब तो सिद्धार्थ को बोधि प्राप्ति नहीं होती
मैं लक्ष्मण जैसा आदर्श भाई नहीं बन सकी
अगर मैं भी साथ जाती तब तो रामायण अधूरी रह जाती
मुझे स्वयंवर में जीता अर्जुन ने था बनी पांच पांडवों की पत्नी
अगर माता कुंती की बात मानने से इनकार कर देती तब तो कौरवों की तो छोड़ो
पांडवों में आपस में महाभारत हो जाता
मैं ही यशोधरा , उर्मिला और द्रौपदी हूँ
मैं ही प्रेम में पगी राधा और मीरा हूँ
मथुरा नरेश कृष्ण और महाभारत के सुदर्शन चक्र धारी राधा बिना अधूरे ही हैं
मैं गोकुल में ही रही पर उन्हें व्यवधान नहीं पडने दिया
यह नहीं कि मैं कमजोर थी
मैं उन्हें रोक नहीं सकती थी
लेकिन मैं स्वार्थी नहीं थी
अगर मेरे त्याग से कोई भगवान बनता है
कोई आदर्श बनता है
तब वैसा त्याग तो मैंने हर युग में किया है
अपने से ज्यादा तवज्जों मैने औरों को दिया है
मैंने कभी निज स्वार्थ नहीं देखा
सदा बलिदान दिया है
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