Thursday, 13 May 2021

ऐ भाई , जरा देख के चलो

गिरी धडाम से
एकदम पीठ के बल
एक क्षण  तो लगा
यह क्या हुआ ??
किसी ने धक्का  दिया  क्या 
पर वह भ्रम था
गलती स्वयं  की
अपनी सामर्थ्य  की परवाह नहीं
जोश में  चली काम  करने
लडखडाया पैर
हंसते  - हंसते  लोट पोट
उठ भी नहीं  पा रही थी
स्थूल  शरीर जो ठहरा
दो लोगों  ने पकड़  उठाया
तब जाकर  खडी हो पायी
सोच कर रौंगटे  खडे हो जा रहे हैं
अगर लगा होता तो
मिट्टी  का फर्श नहीं  होता तो
सर फट गया होता
हाथ  - पैर टूट गया  होता
ईश्वर  का शुक्रिया 
कुछ  नहीं  हुआ
पर फिर एक बार एहसास  हुआ
कुछ  भी  हो सकता है
पल भर में  सब कुछ  बदल सकता है
नियति  तो खेल खिलाती  है  वह तो हम  नहीं  जानते
पर संभल कर  चलना
अपनी सामर्थ्य  को पहचानना
यह तो हमारे  हाथ  में  है
हंसते  - हंसते  ये पंक्तियाँ  याद आ रही है
   ऐ भाई  , जरा देख के चलो
    आगे भी नहीं  पीछे भी
    दाएं  भी नहीं  बाएं  भी
     ऊपर ही नहीं  नीचे  भी

No comments:

Post a Comment