पानी खरीद रहे थे
अब हवा खरिदी जा रही है
प्रकृति हमें सदियों से दिल खोल कर सब देती है
सब कुछ मुफ्त में
मुफ्त में जो मिलता रहा
उसकी कद्र कभी होती नहीं
जब स्वयं की मेहनत
स्वयं की कमाई लगी हो तब फर्क तो पडता है
बचपन में एक कहानी सुनी थी ।एक पिता अपने बेटे को कहता है जाओ काम करों और कुछ कमा कर दिखाओ तब इस घर में रहो ।
लडका पहले दिन माँ से कुछ पैसे मांगता है शाम को पिता को लाकर देता है ।पिता वह पैसे पास के कुएँ में फेंक देते हैं । लडका कुछ नहीं कहता ।
दूसरे दिन बहन से लेता है उसका भी वही हाल ।
अब तीसरे दिन कोई देनेवाला नहीं
सो वह जाता है एक जगह मजदूरी करता है शाम को कुछ पैसे पिता के हाथ में रखता है
आज पिता फिर फेंकने जाते हैं। अबकी बार हाथ पकड लेता है और गुस्से में कहता है
मैं इतनी मेहनत कर लाया हूँ और आप फेंकने जा रहे हैं
पिता मुस्करा उठते हैं
उनके बेटे ने आज सच में मेहनत की थी
जो चीज आसानी से मिलती है उसकी कदर नहीं
हवा , पानी , जंगल , पहाड़
सब पर हम हथौड़ा चला रहे हैं
खत्म कर रहे हैं
भूल जाते हैं कि
इनके अभाव में एक दिन हम भी खत्म हो जाएंगे।
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