जब शांति के सारे मार्ग बंद हो जाएं
तब विकल्प क्या बचता है ??
एक हार मान ले
अपना अधिकार छोड़ दे
संरेडर कर दे
चुपचाप सहन कर ले
कौरव पांच गाँव भी देने को तैयार नहीं थे ।शांति का प्रस्ताव दुर्योधन को मान्य नहीं था
वह तो युद्ध ही चाहता था हर कीमत पर
तब किया क्या जाता
युद्ध लडना ही विकल्प बचा था
या फिर सब छोड वन में चले जाते
तब भी अर्जुन को युद्ध में प्रवृत्त करने के लिए देवकीनन्दन को भगवत गीता का उपदेश देना पडा
युद्ध का परिणाम कभी अच्छा नहीं रहता
वह लंका विजय हो
हस्तिनापुर हो या फिर कलिंग युद्ध
शवों के सिवाय कुछ नहीं
विधवा , बच्चों की असहायता के सिवाय कुछ नहीं
तब भी युद्ध तो करना ही पडता है
हो सकता है यह मजबूरी हो
भारत नहीं करना चाहता पर पाकिस्तान तो करना चाहता है
एकतरफा तो कुछ भी नहीं होता
न प्रेम न युद्ध
अधिकार खोकर बैठ रहना यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है
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