सवाल है कान्हा तुमसे
तुम राधा के हो या रुक्मिणी के
अगर प्रेम राधा से
तब ब्याह रुक्मिणी से
प्यार बंटता भी नहीं
प्रथम प्रेम को भुलाया नहीं जा सकता
राधा को तो तुम कभी भूले ही नहीं
राधा भी तुमको कभी भूली नहीं
तब क्या रुक्मिणी से प्रेम नहीं था
नहीं प्रेम को बांटने की भूल न करें
प्रेम का स्वरूप अपार होता है
प्रेम तो मुझे दोनों से था
एक मेरी बाल सखी थी
उसके साथ खेला कूदा था
निश्छल प्रेम था
वह कान्हा का राधा से प्रेम था
गोकुल से गोपियां सब उसमें समाएं हैं
मैं हमेशा राधा का रहा
तभी तो राधे श्याम कहलाता हूँ
उसके साथ ही पूजा जाता हूँ
रुक्मिणी से भी प्रेम था
वह रानी थी मथुरानरेश कृष्ण की
वहाँ मैं राजा था
कूटनीतिज्ञ श्रीकृष्ण
ईश्वर था
राधा का कान्हा और रुक्मिणी के कृष्ण में बहुत फर्क था
एक राजा और दूसरा गोपाल
एक का पति था दूसरे का प्रेमी
एक गोपी दूसरी राजकुमारी
राजकुमारी के लिए मैं अपनी गोपी को नहीं भूला
राधा मेरे मन में थी
रुक्मिणी मेरी अर्धांगनी थी
कर्तव्य दोनों के प्रति था
एक को दिल में बिठाया
दूसरी को अपने साथ राजसिंहासन पर
कान्हा ही कृष्ण है प्रेम भी शाश्वत है
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