Wednesday, 5 May 2021

क्या मिडिल क्लास मेंटालिटी है

क्या मिडिल क्लास  मेंटालिटी है
बहुत  बार सुना
हंसते  - हंसते  टाल दिया
मिडिल  क्लास  को समझना  सबके बस की बात नहीं
यह वे लोग हैं  जो राष्ट्र निर्माता  है
समाज  निर्माता  है
टेक्स पेयर है
सारा दारोमदार  इन्हीं  के  कंधों  पर
सारी अपेक्षाएं इन्हीं  से
परम्परा  का पालन करना
वर्तमान  में  रहते हुए  उज्जवल भविष्य  का ख्वाब  बुनना
शिक्षा  को पुरजोर बढावा
विरासत को कायम  रखना
आधुनिकता  को स्वीकार  करना

रहते है दो कमरों  के  घर में
स्वप्न देखते हैं  अट्टालिकाओं के
पैसा होते हुए  भी सोच समझ  कर खर्च करते  हैं
फिजुलखर्ची  इन्हें  बर्दाश्त  नहीं
चीजों  का इस्तेमाल  करना इन्हें  बखुबी  आता है
टूथपेस्ट  खत्म  होने पर भी काट - पीट कर जब तक खत्म  न हो जाएं  दम  नहीं
जूस की बोतल में  पानी डालकर खंगार  लेंगे
रसगुल्ले  की  बची  चाशनी से मीठी  पुरी बना लेंगे
सर दर्द  में क्रोशीन  से काम  चला लेंगे
साबुन जब घिस जाय तब उसके टुकडे  टुकड़े  कर डिटर्जेंट  बना लेंगे
हाथ से बुना स्वेटर
हाथ से कूटे मसाले बहुत  भाते हैं
कपडा फट जाएं  तो उसका पोछा बना लेते  हैं
मगर कामवाली  बाई  को नई साडी भी दीवाली  पर देते हैं
वाॅचमैन  , पोस्ट मैन को बख्शीश भी देते हैं
सब्जी वाले से सब्जी  पर धनिया - मिर्ची  मुफ्त  में  मांगते हैं
पर मेहमानों  की खूब  आवभगत करते हैं

टैक्सी  नहीं  बस और ट्रेन  से सफर करते हैं
पर बच्चों  की  शिक्षा  में  कोताही  नहीं  करते हैं
किश्त पर सामान  लेकर  घर को सजाते हैं
किसी को अपनी कमजोरी  का एहसास  नही होने देते
कभी-कभी  महंगे होटलों  में  भी खाना खा आते हैं
मेनू  पर कीमत   देखकर डिश आर्डर  करते हैं
कभी  कभी  पिकनिक  पर भी जाते हैं
नाश्ता  घर से बनाकर ले जाते हैं

रात - दिन मेहनत  करते है
कभी चुपचाप  नहीं  बैठते हैं
डाॅक्टर  , इंजीनियर  , टीचर यही तैयार  करते हैं
नेतागिरी इनके बस की बात नहीं
ये वोट भी मुश्किल  से देने जाते हैं
हाॅ चर्चा  में  ये किससे पीछे नहीं
तभी तो बुद्धिजीवी कहलाते हैं

अमीर  तो अमीर  है उसे पैसे  की  परवाह  कहाँ 
गरीब  तो गरीब  है उसे दो जून को रोटी ही बहुत  है
समाज  की  परवाह  भी इन दोनों  तबको  को नहीं
यह  मिडिल  क्लास  ही है जो सबको साथ लेकर चलता है
फिर भी सबसे ज्यादा  वहीं  पीसता है
उसे किसी  चीज में  छूट नहीं
नहीं  कोई  सरकारी बैनिफिट्स
क्योंकि वह वेतन भोगी है
उसकी कमाई  जग-जाहिर  है
भले यह सब करते-करते  महीने के आखिर  तक कंगाल  हो जाएं
फिर भी फर्ज  निभाना है
देश और समाज  का भार तो उसे  ही निभाना है ।

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