Wednesday, 19 May 2021

जिंदगी भी हो गई बेचारी

तुम  चली गई  मुझे  छोड़
मेरी जीवन संगिनी
बरसों  का नाता  हमारा
आज यू छोड़  चली
मेरे  मन को तोड़  चली
कहती थी
तुमसे पहले मैं  जाऊंगी
सुहागन बन अर्थी  पर विराजूगी
मैं  नाराज हो जाता  था
मेरी नाराजगी  की इस बार कोई  परवाह  न की
चुपचाप  अपनी  राह हो ली
सब तो है यहाँ
तुम्हारा परिवार
तुम्हारे  बेटा - बेटी
बहू - दामाद
नाती - पोते
भरापूरा  घर
पर तुम  तो  नहीं
तुमसे ही हैं  मेरा संसार
तुमसे ही था यह घर गुलजार
अब तो  मैं ही रह गया अधूरा
मेरी अर्धांगनी  चल दी
तब मैं  कैसे रहूँ
मेरे जीवन का उजाला तो तुम  ही
अब तो बस अंधेरा ही अंधेरा  है
तुम्हारे  बिना जीना भी कोई  जीना है
बस शरीर रह गया है
प्राण तो तुम  ही ले गई
जीता   जागता  चलता फिरता  इंसान
सारी इच्छाएं  खत्म
पल पल  बिताना भारी
जिंदगी  भी हो गई  बेचारी

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