आज भी सब कुछ तुम्हारा है
मेरा कुछ नहीं
हम तो बस अजनबी है
तुम्हारा घर
तुम्हारे माता - पिता
तुम्हारे भाई - बहन
तुम्हारा परिवार
उस परिवार में हम कहाँ
यह आज तक समझ न आया
बच्चे कहने को तुम्हारे
पर अधिकार के नाम से शून्य
तुम तो कर्तव्य वान
तुम्हें तो समाज की चिंता
समाज ही सब कुछ
उसमें मेरा और मेरे बच्चों की भावनाओं का गला घोंटा गया
इच्छा - आंकाक्षाओ की बली चढा दी गई
हम तो समझे नहीं
कब हमारी जवानी गई
कब बच्चों का बचपन खत्म हुआ
समय से पहले बडे हो गए
दूसरे के ऊपर निर्भर हो बचपना भूल गए
न कभी जिद न कोई मांग
वो जाने कब बडे हो गए
सबका वक्त बदल गया
हम तो वहीं के वहीं खडे
जहाँ से चले थे वहीं पडे रहे
हसरतों से दूसरों को निहार रहें
अतीत को भूल जाओ
अतीत के गर्भ में तो वर्तमान छिपा है
जिस पेड़ का जड कमजोर वहाँ फुनगी कैसे पनपेगी
जिस ईमारत की नींव कमजोर वह ऊपर से मजबूत कैसे हो सकती है
उम्र बीत चली उम्मीद के सहारे
फिर भी टीस तो बाकी है
सही भी है
समय तो निकल ही गया
जब जरूरत हो तब वह न मिले
पेट में भूख हो तो स्वादिष्ट खाना न मिले
जब समय हो तो इच्छा अधूरी रहें
तब उसका क्या महत्व
का बरखा जब कृषि सुखाने
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