बेटी केवल चूल्हे जलाने वाली लकड़ी का ही बोझ नहीं उठाती है
वह देश को मेडल दिलाने का भी बोझ उठाती है
वह केवल भक्ति और प्रेम में पगी कान्हा की दीवानी मीराबाई ही नहीं
देशभक्ति से ओतप्रोत मीराबाई चानू भी हो सकती है
घर ही नहीं चलाती अब
विमान भी चलाती है
केवल गोल - गोल रोटी ही नहीं बनाती
अपने को इस काबिल बनाती है कि सब उसके इर्द गिर्द घूमे
अब वह घूंघट में ही नहीं
मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में स्वीमिंग सूट पहनती है
हाफ पैंट पहन कर दौड़ लगाती है
परिवार के साथ देश का नाम भी ऊंचा करती है
वह तो बदल गई
पर लोगों की मानसिकता कब बदलेंगी
समाज की सोच कब बदलेंगी
अभी भी गर्भ में मारना
दहेज की मांग करना
लडका - लडकी में भेदभाव करना
वह बदस्तूर जारी है
वह कैसे सिद्ध करें कि वह लडको से कम नहीं
सब कुछ तो कर रही है
हर फील्ड में परचम फहरा रही है
हल्के से हल्का
भारी से भारी
हर काम कर रही है
कोमलता से ऊपर उठ रही है
फिर भी अगर लडकी होने पर
यह कहा जाएं
कि लडकी हुई है
उदासी ओढकर
मुंह बनाकर
तब तो लानत है
ऐसे समाज पर
उसकी सोच पर
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