डरते रहें हम उम्र भर
किसी को नाराज मत करों
किसी को जवाब मत दो
संबंधों को संभाल कर रखो
सहन कर लो कुछ बातें
न जाने कब किसकी जरूरत पड जाएं
हम डरते रहते हैं ताउम्र
किसी अंजानी आपदा के आने के डर से
जबकि सामना हमें ही करना पडता है
कभी-कभी ऐसा महसूस होता है
क्या फायदा इससे
अगर कोई हितैषी होगा
तब वह किसी भी वक्त हाजिर होगा
नहीं तो कितना भी यतन करों तब भी
इस डर से हम जीना छोड़ दे
कुढते रहे लेकिन प्रकट न कर पाएं
यहाँ तो रास्ते चलते हुए भी
व्यंग्य का सामना करना पडता है
फिर डरने से क्या फायदा
कब तक डरते रहें
कब तक लिहाज करते रहें
सामने वाला अगर पत्थर के समान हो
यह व्यक्ति के संदर्भ में
परिवार के संदर्भ में
समाज के संदर्भ में
जाति और धर्म के संबंध में
यहाँ तक कि दो देशों के संबंध में भी
क्यों नहीं आर या पार
ठीक लगें तो ठीक
अन्यथा तुम अपनी राह
हम अपनी राह
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