कितना भी कुचला जाएं
कितना भी मसला जाएं
कभी भी तोड़ा जाएं
कली खिलने के पहले ही
तब भी फूल मुस्कराना नहीं छोड़ता
पतझड़ के बाद वसंत आता ही है
यह तो उसकी नियति है
जो हो जैसे भी हो
जब तक जीता
तब तक मुस्कराता
तत्पश्चात कचरे के ढेर में
उसे कोई फर्क नही पड़ता
No comments:
Post a Comment