घर तो घर होता है
सबसे अजीज होता है
घर में अपने रहते हैं
अपनों के साथ रहते हैं
मन खोल कर रहते हैं
पूरा अधिकार होता है
घर एक मंदिर के समान होता है
मंदिर में भगवान रहते हैं
घर में वे लोग रहते हैं
जो हमारे लिए कुछ भी कर सकते हैं
वे अपने होते है
बनावट का रिश्ता नहीं होता
वहाँ हम रूठ सकते हैं
नाराज हो सकते हैं
गुस्सा हो सकते हैं
मन की भड़ास निकाल सकते हैं
औपचारिकता से दूर
हमारा असली रूप
फिर भी सबको हमसे प्यार
तभी तो प्यारा और अपना लगता है घर ।
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