जिंदगी की गाड़ी चलती रही
हम हिचकोले खाते रहे
कभी ऊपर कभी नीचे
कभी दाएं कभी बाएं
गाडी भी रफ्तार में चलती रही
कभी थोड़ा धीमी जरूर हुई
रूकी बिल्कुल नहीं
हम जो ड्राइवर सीट पर बैठे थे
स्टीयरिंग हमारे हाथ में था
हार मानना हमने भी कहाँ सीखा था
चलते रहे चलते ही रहे
आज भी चल ही रहे हैं
चला भी रहे हैं
गंतव्य पर जब पहुंचेगे तब तक
रूकना हमने नहीं सीखा ।
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