सब कुछ भाग्य और परिस्थितियों पर निर्भर
हवा का रूख बदलते देर नहीं लगती
कल का भिखारी आज राजा
आज का राजा कल भिखारी
समय क्या करवट लेगा
कोई नहीं जानता
कोई मूढ कालीदास बन जाता है
तो कोई काम छोड़ तुलसीदास
तो कोई राज-पाट और गृहस्थी छोड़ भगवान बुद्ध
अगर हवा का रूख सही हो तो
टूटी नाव भी किनारे पर
न हो तो
बिना झंझा - तूफान के भी मझधार में डूब जाएंगी
कभी-कभी तो किनारे तक पहुँच कर भी
तकदीर और तदबीर
तकदीर तस्वीर बदल देती है
न जाने कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है
अगर तकदीर न हो
तब तदबीर कभी-कभी दूर से ही देखती रह जाती है
जिंदगी ठेंगा दिखाते हुए गुजर जाती है
कोई जान भी नहीं पाता
हवा अनुकूल तो सब अनुकूल
हवा प्रतिकूल तो सब प्रतिकूल
भाग्य का पहिया कैसे घूमे
किस तरह से घूमें
यह तो वही जानता है
क्योंकि यह किसी के बस में नहीं
यह विधाता की देन है
उसका विधान इंसान कैसे समझे ।
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