Friday, 3 September 2021

उसके खेल निराले भैया

जो जीवन भर अपनी प्रतिज्ञा में बंधा रहा
अधर्म पर अधर्म होते देखता रहा
प्रतिज्ञा प्राणों से ज्यादा प्रिय
पिता को दिया वचन निभाना था
आजीवन ब्रह्मचर्य भी स्वीकार किया
हस्तिनापुर पर आंच न आने दी
उसके लिए जो करना था वह किया
भले ही काशी नरेश की कुमारियों को बलात् अपहरण
अंबा का शाप स्वीकार करना
गांधारी का अंधे धृतराष्ट्र से ब्याह
द्रोपदी का भरी सभा में अपमान
बार - बार दुर्योधन की जिद के आगे झुकना
फिर भी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी
हस्तिनापुर से बंधे रहे
राजा नहीं एक तरह से रक्षक बनकर

वहीं दूसरी तरफ कॄष्ण थे
देवकीनन्दन वासुदेव कृष्ण
पूरे ब्रह्मांड के स्वामी
वह भी अपनी प्रतिज्ञा में बंधे थे
महाभारत में शस्त्र नहीं उठाऊगा
बस अर्जुन का सारथी बनकर रहूंगा
लेकिन जब बारी आई
भक्त की प्रतिज्ञा  की लाज रखने की
तब अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी
चल पडे रथ से उतर
भीष्म को सुदर्शन चक्र से वध करने

पार्थ को शायद
यह भक्त और भगवान का संबंध समझ नहीं आया होगा
उन्हें कैसे समझ आता
अगर समझते तो भगवत गीता का उपदेश नहीं देना पडता
कृष्ण दौड़ रहे हैं उनकी तरफ
पार्थ पीछे से पैर पकड़ रोक रहे हैं
भीष्म हाथ जोड़ मुस्करा रहे हैं
वह अच्छी तरह जान रहे हैं
भगवान ने अपने भक्त की प्रतिज्ञा की लाज रखने के लिए
अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी
वे ईश्वर थे
बहुत कुछ उन्होंने किया
जो नहीं करना था
पर पांडवों के लिए सब स्वीकार किया
महाभारत का युद्ध में  प्रमुख भूमिका निभाने वाला
किसी जगह मैदान छोड़ भी भागा
तभी रणछोड़ दास भी कहलाया
भक्त के आगे भगवान झुकते हैं
प्रेम और भक्ति तथा आस्था
पूर्ण विश्वास उस परमेश्वर पर
वह क्या करता है
क्या करेंगा
वह तो वही जाने
उसके खेल निराले भैया।

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