प्रियतम बिना प्रेम कहाँ
अपनापन बिना घर कहाँ
सम्मान बिना व्यक्ति कहाँ
मान - अपमान
अपना - पराया
प्रेम - घृणा
इसी में तो अटका है जीवन सारा
जीवन तो इनके बिना सूना
कोई तो अपना हो
कोई तो हमारी कदर करें
कोई तो हमें अपना समझे
यह सब मिल जाएं
तब उलझी हुई जिंदगी भी हो जाती है सहज
जीने का मन करता है
प्रेम और अपनापन
अपनों के साथ जीने
सुख दुःख बांटने
हंसी- मुस्कान बिखरने का मजा ही कुछ
जिंदगी भार नहीं प्यारी लगती है
जीने का मजा दो गुना हो जाता है
मन की बगिया खिल उठती है
हर डाली - डाली
पत्ता - पत्ता झूमने लगता है
शमा सुहावना लगता है
हर तरफ से सुगंधित बयार चलने लगती है
जीवन भी झूमता है
गाता है
कहता है
ऐ जिंदगी तुझसे ज्यादा खूबसूरत कुछ भी नहीं।
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