बहुत कर लिया परवाह
बहुत कर ली फिक्र
बस अब और नहीं
कब तक
क्या हासिल
कुछ नहीं
जब कुछ नहीं
तब फिक्रमंद क्यों
कुछ अपने बस में नहीं
न सुख
न दुख
न हंसी
न खुशी
न हंसना
न रोना
यह तो छीन कर या जबरन हासिल नहीं होते
स्वाभाविक है
जब जो होना है
तब सो होना है
होने दो
जैसे समय वैसा कर लेना
आज उसकी सोच में क्यों डूबना
जीना है कहने को अपनी मर्जी
पर अपनी मर्जी चलती कहाँ है
तब क्यों करें
परवाह और फिक्र
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