Sunday, 14 November 2021

तब क्यों करें

बहुत कर लिया परवाह
बहुत कर ली फिक्र
बस अब और नहीं
कब तक
क्या हासिल
कुछ नहीं
जब कुछ नहीं
तब फिक्रमंद क्यों
कुछ अपने बस में नहीं
न सुख
न दुख
न हंसी
न खुशी
न हंसना
न रोना
यह तो छीन कर या जबरन हासिल नहीं होते
स्वाभाविक है
जब जो होना है
तब सो होना है
होने दो
जैसे समय वैसा कर लेना
आज उसकी सोच में क्यों डूबना
जीना है कहने को अपनी मर्जी
पर अपनी मर्जी चलती कहाँ है
तब क्यों करें
परवाह और फिक्र

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