आशा और निराशा
विश्वास और अविश्वास
प्रेम और घृणा
इनके बीच में जीवन
यह कभी उलझा तो कभी सुलझा
इनके बीच में हम
आस लगाए रखते हैं
सकरात्मक रवैया रखने को सब कहते हैं
अच्छा अच्छा सोचो
सब अच्छा अच्छा ही होगा
अगर सोचने से ही अच्छा होता
तो बुरा भला कोई क्यों सोचेगा
अगर सोचने से ही हो जाता सब
तो सोचने में क्या हर्ज
पर ऐसा होता नहीं
बहुत पथरीली और कांटो भरी होती है जमीन
उन्हें सींचना पडता है
हरा- भरा बनाना पडता है
पत्थर को तोड समतल करना पडता है
इन सबके बीच बीच में
आशा और निराशा से भी जूझना पडता है
उलझन को सुलझाना पडता है
तब जाकर जीवन की जमीन समतल हो पाती है
यह सब एक दिन में नहीं
बरसों लग जाते हैं
त्याग और तपस्या
पीढियों का बलिदान
आकांक्षाओं की बलि
तब लहलहाता है कोई
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