सुबह-सुबह पंछियों को देखा
क्या उडान भर रहे थे
लगता था
आज मंजिल पर पहुच ही जाएंगे
जो हासिल करना है वह कर लेंगे
पर यह क्या
शाम को फिर थके हारे
अपने ही नीड की तरफ वापस
यह अक्सर होता है
अक्सर क्या हर रोज होता है
मंजिल सभी को मिल जाएं
इतने भी ख़ुशनसीब सब नहीं
कुछ के नसीब में ताउम्र यही करना लिखा होता है
कुछ के हौसले पस्त
कुछ नियति मान लेते है
कुछ संतोष कर लेते हैं
कुछ दुखी होते हैं
कुछ भाग्य को कोसते हैं
कुछ क्रोध में आजीवन जलते रहते हैं
कुछ ईष्या और जलन से ग्रस्त
कुछ तो जग ही छोड़ जाते हैं
बडा कठिन है
उडान तो सब भरते हैं
मंजिल सबको नहीं मिलती
क्योंकि इसमें नियति भी खेल दिखाती है
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