दिन डूब रहा था
शनै शनै सूर्यास्त हो रहा था
अंधेरा दस्तक दे रहा था
उसी के साथ मन भी डूबा जा रहा था
हर सुबह एक नयी आशा के साथ
हर संझा एक मायूसी के साथ
कब सुबह होगी
बरसों बीत गए
इस इंतजार में
अब तो अच्छे दिन आएंगे
कुछ खुशियाँ आएगी
हर बार निराशा ही हासिल
पता नहीं
क्या लिखा है विधाता ने
तकदीर का खेल निराला
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