कुछ तुम अपनी कहो
कुछ हम अपनी कहें
तुम हमारा सुनो
हम तुम्हारा सुने
तुम हमारी बात को समझो
हम तुम्हारी बात को समझे
एक दूसरे से कहना
एक दूसरे की सुनना
एक दूसरे को समझना
संबंधों के लिए बहुत जरूरी है
एकतरफा कुछ नहीं हासिल होता
दोनों की भागीदारी हो
तभी संबंध भी निखरते हैं
पल्लवित- पुष्पित होते हैं
मिठास रहती है
विश्वास बढता है
एक मजबूत बंधन बंध जाता है
रोकना - टोकना
वर्चस्व जताना
इससे मधुरता नहीं खटास आ जाती है
वह दूध के समान कभी भी फट सकता है
तितर बितर हो सकता है
पानी होकर अलग बह सकता है
तब नींबू नहीं पानी जैसे हो
दूध में मिलकर जो समरस हो
अलग-अलग नहीं
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