Saturday, 20 November 2021

जो जैसा था उसी में खुश रहते थे

एक ही तौलिया
एक ही साबुन
एक ही अलमारी
एक ही बिस्तर
सब उस पर
सुबह-सुबह उठाया जाता
एक के ऊपर एक रखा जाता
वह बैठने का सोफा बन जाता
कभी-कभी लेट भी लिया जाता
सबके कपडे एक ही जगह तहा कर
तब भी मिल जाते थे
क्योंकि  थोड़े होते थे
सब अलमारी में समा जाते थे
एक ही साबुन होता था
लाइफब्वाय या हमाम
सब उससे नहाते जब तक कि खत्म नहीं हो जाता
एक ही तौलिया और एक ही नैपकिन
हाइजिन क्या होता है
यह तो नहीं जानते थे
पर सब साझा होता था
सीमित होता था
बीमार भी कम ही पडते थे
मिट्टी में  खेलते थे
कहीं भी पानी मिला पी लेते थे
बिसलरी का है या एक्वा का
उससे कोई मतलब नहीं
बस प्यास बुझने  से मतलब था
रात की बासी रोटी भी बडे चाव से खाते थे
कडक पाव और मस्का मिल जाते थे किसी दिन
तब बात बन जाती थी
पिज्जा - बर्गर से तो अंजान ही थे
बडा - पाव ही प्यारा था
सूप की तो छोड़ों
आलू की सब्जी भी मिल जाएं तो भी बहुत था
फलों का जूस का पता नहीं गोला भाता था
बर्फ को चूस  चूस कर खाते थे
फिर भी मौज में रहते थे
सादा जीवन था
ताम झाम नहीं था
जो था जैसा था
उसी मे खुश रहते थे

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