मैं कोई साधारण नहीं
जानते हो
मैं कौन
मैं नारी हूँ
हवा के थपेडों को सह लेती हूँ
जमाने से लड जाती हूँ
अपना असतित्व कायम रखना मैं जानती हूँ
मैं तो वह चट्टान हूँ
जिस पर
तूफान , बरसात , बिजली , कडकती धूप
किसी का असर नहीं होता
खडी रहती हूँ मजबूती से
हर कुछ सह लेती हूँ
कभी-कभी दरक जाती हूँ
टूट जाती हूँ
पर पल में खडी भी हो जाती हूँ
धीरज है मुझमें
सहनशीलता है मुझमें
जननी हूं मैं
बहन , बेटी ,पत्नी और माँ हूँ
घर की धुरी हूँ
अपने को मिटाती हूँ
तब एक सुखी गृहस्थी की नींव पडती हूँ
गृहणी हूँ
घर चलाना यह सबके बस की बात नहीं
एक घर नहीं
दो - दो घर
ससुराल और मायका
दोनों की जिम्मेदारी उठाती हूँ
उनके सम्मान और इज्जत का दारोमदार मुझ पर
उसे बखूबी निभाती हूँ
नारी हूँ मैं
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