टीचर हूँ जाऊँगी कहाँ
यही रहूंगी कहीं आसपास
किसी कक्षा में
कभी हाथ में लिए चाक में
कभी श्यामपट्ट पर लिखते - लिखाते
कभी कुरसी पर बैठ काॅपी जांचते हुए
कभी बच्चों को पढाते हुए
कभी किस्से कहानी सुनाते हुए
कभी लाइब्रेरी की किताबों के बीच
कभी बच्चों को शैतानिया करते देखते हुए
कभी डांटते हुए
कभी सहकर्मियों से बतियाते हुए
टेबल पर पडे किताबों के गट्ठर के बीच खाना खाते हुए
कभी छुट्टी में घर - बाहर की चर्चा करते हुए
कभी सुबह की प्रार्थना के समय
कभी वाद विवाद प्रतियोगिता की तैयारी में
फन फेयर की तैयारी में
ऐसे न जाने कितने वाकयात
इन सबसे छूटना कहाँ हो पाता है
हर साल बच्चों को बिदा करते हैं
कभी हम भी बिदा हो जाते हैं
पर संबंध कहाँ टूट पाता है
यादों में, भावनाओं में
गोते लगाता रहता है
समय-समय पर याद आ जाता है
यह ज्ञान की डोर है
एक बार पकड़ लिया तब आसानी से नहीं छूटती
हममें और बच्चों में
हममें और हमारी पाठशाला में
इनका कारण किताबों से नाता है
और किताबों से अच्छा साथी कोई नहीं
न जाने कितनों को जोड़ता है
यह जोड़ आसानी से नहीं टूटता
टीचर हूँ ना
यही रहूंगी कहीं आसपास
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