सत्ता का रणसंग्राम है
लोगों का ईशारा है
चुनाव तो एक बहाना है
हार - जीत तो इसका खेल हैं
यह राजनीति का अभिन्न अंग है
जनता चेता रही
बस विकास चाहिए
और कुछ नहीं
जाति -धर्म के बंधनों से मुक्त हो आगे बढ़ना है
बेरोजगारी को दूर कर
रोजगार लाना है
रोजी रोटी की जरूरत
सुरक्षा की दरकार
भाषण और जुमला नहीं
यह जनतंत्र है
किसी की बपौती नहीं
अन्नदाता का सम्मान हो
जमीन से जुड़े रहना है
विदेश में भटकने से पहले
देश को मजबूत बनाना है
किसी को खत्म नहीं करना है
सबके साथ चलना है
किसी पार्टी से मुक्त नहीं
बल्कि सब पार्टियों को साथ लेकर चलना है
बोल अच्छे बोलना है
कडवा बोल और किसी को कोसना
यह जनता को पसंद नहीं
जनता काम चाहती है
बड़बोलापन नहीं
वह किसी एक की नहीं
आज इसकी तो कल उसकी
उस पर आँख मूंद कर भरोसा नहीं
वह कब किसको रवाना कर दे
सत्ता से बेदखल कर दे
इसकी घोषणा तो कोई नहीं कर सकता
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