एक दुबली पतली लडकी
चश्मा लगाए हुए
साधारण सी
ऐसी कुछ खास बात तो नहीं
पर जाने क्यों अपनापन लगता है
सालों से परिचय
पर देखा जाए तो यह साधारण नहीं
आज चश्मा हट गया है
और निखार आ गया है
जिम्मेदारियो का भार खत्म हो गया है
उम्र से पहले बडी हो गई
माँ जो चली गई असमय
भाई बहनों की जिम्मेदारी
ननद देवर की जिम्मेदारी
सास श्वसुर की जिम्मेदारी
अकेलेपन को झेल रहे पिता की जिम्मेदारी
बखूबी निभाया
कभी शिकन न आने दी
न शिकन न शिकायत
उस शख्स का नाम है शीतल
आज स्वयं को देख कर लगता है
हमें तो इससे सीखना चाहिए
हम तो घबरा जाते हैं
उम्र में भले बडे हो गए हो
पर कभी-कभी छोटे बाजी मार ले जाते हैं
धीरता और समझदारी
अंजाने को भी अपना बनाना
इसमें शायद योगदान संजय जैसे जीवनसाथी का भी हो
मजबूत बनता है इंसान तब
जब उसके साथ सुरक्षा कवच हो
तब शीतलता भी कायम रहती है
और आत्मविश्वास भी
तभी तो सभी के लिए शीतल है अनमोल
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