वह जोश और गुमान
वह सौंदर्य और ठसक की चाल
वह गाना - गुनगुनाना
वह अल्हड़पन और हंसी
वह मस्ती वह खुमारी
फिर नहीं आती
एक बार यौवन बीत गया सो बीत गया
फिर तो समझदारी
लाचारी , बेचारगी , समझौता
यही रह जाता है
वह शरीर ही अपना साथ छोड़ने लगता है
जिस पर हमें कभी गुमान था
वह पैर ही लडखडाते हैं
जिससे हम कभी मीलों चला करते थे
वह जबान ही खुलकर नहीं बोल पाती
जब हम बेबाकी से अपनी बात को रखते थे
वह इठलाना, वह नखराना
सब भूल जाते हैं
एक समय की कली मुर्झाया हुआ फूल बन जाती है
रसीले अंगूर जैसा बदन सिकुड़ कर किशमिश बन जाता है
हाथ - पैरों में झुर्रिया
कोमल और सुंदर चेहरे पर उम्र की रेखाएं
बहुत कुछ कह जाती है
कान में कुछ धीरे से कहती है
अब तो बचे - खुचे कुछ दिन बाकी है
जी भर कर जी लो
फिर ऊपर जाने की तैयारी करनी है
न जाने कब बुलावा आ जाएं।
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