वंशवाद तो हर क्षेत्र में
वह राजनीति हो या बिजनेस
स्वाभाविक है
जिसने खडा किया है
वह अपनी संतान को देना चाहेगा
मोह तो होता ही है
राम बडे थे
राजा दशरथ का पुत्रप्रेम भी था
जो महारानी कैकयी को रास नहीं आया
अगर राम तो भरत क्यों नहीं
वनवास का रास्ता दिखा दिया
राम ने स्वेच्छा से स्वीकार भी कर लिया
यहाँ राम को अपनी योग्यता सिद्ध करनी थी
वह वन वन घूमे
साधुओं - संन्यासियो को राक्षसों के आतंक से मुक्ति दिलाई
अराजकता का अंत कर रहे थे
साथ में निषादराज और शबरी के प्रति प्रेम भी
पूरी भील जाति को
जनजातियों को अपना बना रहे थे
उपेक्षित और वंचित सुग्रीव को अधिकार दिलाने के लिए
शापित अहिल्या को उसका सम्मान दिलाया
राम वह सब कर रहे थे जो एक राजा को करना था
भरत तो अयोध्या में चरण पादुका संभाल रहे थे
राम जनता के दिल पर राज कर रहे थे
अप्रत्यक्ष रूप से राजा तो वही थे
रावण से भी दुश्मनी सीता के कारण नहीं
बल्कि पूरी नारी जाति का सम्मान वापस दिलाने के लिए
रावण वध का कारण वही था
हनुमान ,जामवंत , नल- नील
जटायु , संपाती
ये पशु-पक्षी उनके सहायक बनें
उन्होंने किसी को तुच्छ नहीं समझा
यह राम ही थे जिन्होंने ताडका वध और शिव धनुष को तोड़ अपने पराक्रम का परिचय दिया था
माता कैकयी के प्रति नाराजगी का इजहार तक नहीं किया
कोई शिकायत नहीं उस व्यक्ति के प्रति
लोग भी प्रभावित हो रहे थे
उनके स्वभाव
उनकी वीरता
उनकी धीरता
सराहा जा रहा था
वे केवल अयोध्या वासियों के दिलों में नहीं
पूरे भारतवर्ष में
उत्तर से दक्षिण तक अपने को सिद्ध करने में लगे थे
राम केवल राजा ही नहीं
एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे
जनता की आवाज सुन कर उस प्राणप्रिया को वन भेज दिया
जिसके लिए उन्होंने महाबलशाली रावण से युद्ध ठाना
सोने की सीता बना अश्वमेध यज्ञ किया
जहाँ बताया कि जानकी अब भी उनकी जान है
बहुपत्नीत्व का परिणाम उन्होंने अपने ही घर में देखा था
पत्नी के प्रति निष्ठा फिर भी प्रजा सर्वोपरि
प्रजा की गलती का एहसास कराया पर दंड देकर नहीं
आज भी राम राज की कल्पना करने का मकसद यही है
राजतंत्र में रहते हुए
राम ने प्रजातंत्र को माना
कदम कदम पर सिद्ध किया
राजा दशरथ का उत्तराधिकारी बन कर नहीं
राजनेताओं के पुत्र राम से सीखे
अपने को काबिल बनाये
बाप की विरासत पर घमंड नहीं
खुद को खडा करें
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