इतना फेंकते हैं
फेंकते ही जाते हैं
जबकि उनकी असलियत से सब वाकिफ होते हैं
ऐसा नहीं कि कोई अंजान
पर कौन मुंह लगें
बेकार का वाद - विवाद करें
ऐसे लोग इतने इत्मीनान से फेंकते हैं
क्या बताएं
अब उसका कोई उपाय नहीं
बस सुनते जाएं
एक दिन ऐसा कर दे
सब फेंकना धरा का धरा रह जाएं
ऐसे लोग अपने आस-पास
गली - मुहल्ले , पडोसी
यहाँ तक कि परिवार में भी
झूठ को सच करने की कला में माहिर
वो झूठ फेंके
उनकी बात को आप भी दूर फेंक दो
सुनो और मुस्कुराओ
ये लोग भी पृथ्वी के एक नायाब जीव हैं
जो रहेंगे झोपड़ी में बताएँगे महल
रहेंगे आलसी दिखाएँगे करतबी
रहेंगे पैसे - पैसे को मोहताज
दिखावा करेंगे ऐसा जैसे बडा दानदाता हो
चाहे कौडी भर ज्ञान न हो
जताएगे ऐसे उनके जैसा जानकार कोई नहीं
उनसे उलझना पत्थर पर सर मारना है
क्या करें ऐसे लोग
फेंकना ही जिनका जमीर है।
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