Tuesday, 29 November 2022

मैं किसान हूँ

किसान हूँ
किसी का दिया नहीं खाता हूँ
परिश्रम करता हूँ
खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ
धूप में पसीना बहाता हूँ
ठंडी और गर्मी के थपेडे  सहता हूँ
बारिश के अंधड - तूफान का सामना करता हूँ
प्रकृति के प्रकोप सहता हूँ
बंजर मिट्टी को उपजाऊ बनाता हूँ

मैं अन्नदाता हूँ
अन्न उगाता हूँ
पूरे संसार का पेट भरता हूँ
मैं किसी की दया नहीं
अपना हक चाहता हूँ
मुझे उचित मूल्य मिले मेरी फसल का
उचित मुआवजा मिले

मैं कोई सरकार का नौकर नहीं
वेतन और बोनस नहीं लेता हूँ
मेहनत मैं करता हूँ
लाभ दूसरे उठाते हैं
मुझसे टमाटर दो रूपये किलो 
बाजार में चालीस रूपये
सब दूसरे की जेब में

मैं व्यापारी नहीं हूँ
पर किसान जरूर हूँ
मेरी जरूरत सभी को है
मैं मिट्टी में सोना उगाता हूँ
सोनार नहीं हूँ
तभी तो उस सोने को औने पौने दामों में बेच देता हूँ

अब तक तो मैं अंजान था
अब मुझे अपनी कीमत समझ आ रही है
अब मुझे फंसना नहीं है
ज्यादा नहीं पर 
हक और उचित मूल्य जरूर चाहिए
अब मैं चुप नहीं बैठूगा
मुझे लाचार और कमजोर न लेखा जाए
मेरी काबिलियत का मूल्यांकन होना चाहिए

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