तेरे हर पन्ने को लिखने का अधिकार मुझे होता
मैं स्याही से नहीं लिखती पेंसिल से लिखती
कुछ गलत हो गया तो तुरंत मिटा डालती
बडे स्नेह और प्रेम से अक्षर उकेरती
एक एक शब्द को अलंकारों से सजाती
उस किताब में मेरे बाबूजी होते
मेरी अम्मा होती
उनका संघर्ष होता
मेरे सहोदर भाई बहन होते
उनका संवरा जीवन होता
साथ हंसते और खिलखिलाते
उसमें मेरा प्यारा बचपन होता
अल्हड़पन जवानी का होता
प्रोढ़ावस्था के सपने होते अपने बच्चों के लिए
बच्चों को देखती अपने सपनों को साकार करते
हमारा जीवन क्या बच्चों में ही जीवन हंसता - बसता है
उनको खुश देख मुस्कुरा लेती जी भर
न जाने कितने जतन कर और सोच सोच कर लिखती
हर पन्ना मेरे लिए अमूल्य होता
बडी मेहनत लगती है
ऐसी किताब लिखने में
सालों गुजर जाते हैं
बचपन बीत जाता है
जवानी चली जाती है
बुढ़ापा दस्तक देने लगता है
तभी लगता है
अभी तो किताब अधूरी है
कितना कुछ लिखना था
कितना कुछ छूट गया
कितना कुछ भूल गया
समय भी बीत गया
किताब लिखना जारी है
समझ नहीं आया जो लिखा सही लिखा
क्या गलत लिखा
वह मिटाया जा सकेगा या नहीं
खैर जिंदगी न तू एक किताब है
न तुझे लिखने का अधिकार मेरे हाथ में है
जो समझ आया वह लिखा
बाकी सब उसने किया
कहने को जिंदगी हमारी
पर कहाँ वह हमारे वश में है
नियति के खेल निराले
जो चाहे वह करा ले
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