Monday, 4 November 2024

मुसाफिर

कहने को तो सब अपने 
सारा जहां अपना 
समय पर ढूंढा तो 
नहीं मिला कोई अपना 
बदले - बदले से सब लगे 
ढूंढती रही ऑखें भीड़ में 
लगा सब है अंजान
हम गफलत में जीते रहें 
विष - गरल पीते रहे 
मन में भ्रम पालते रहे  
तब यह महसूस हुआ 
यहां कोई अपना - पराया नहीं 
सब झमेला मोह - माया का 
सब यही रह जाता है 
मुसाफिर अकेला आता है 
अकेला ही जाता है 

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