मन में बहुत घबराहट थी
गणित का पेपर था जिससे मेरा छत्तीस का आंकड़ा था
कभी गणित मुझे न रास आया न समझ आया
घसीटते- घसीटते कैसे ही पास हो गया
वाकया यू था कि
मुझे कुछ आ नहीं रहा था पर दिखाने के लिए कुछ न कुछ अंकों से खेल रहा था
ऐसे तो बैठ नहीं सकता था
अचानक अध्यापक महोदय पास आकर बोले कि ठीक से बैठो
वह पीछे वाला नकल कर रहा है
कहकर वे आगे बढ़ गए
मुझे थोड़ा संतोष हुआ
मेरे जैसे और मुझसे भी गए - गुजरे लोग हैं
थोड़ा-बहुत गर्वित भी हो उठा
बात पुरानी हो गई
आज जिंदगी का गणित सुलझाने बैठा हूं
हार नहीं मानता
यह सोचकर कि
मैं ही नहीं बहुत से लोग है हम जैसे
हमसे भी कठिन हालात हैं उनके
वे नहीं हार मानते तो मैं क्यों ???
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