Saturday, 11 October 2025

आभार उसका

आज कहीं जा रही थी । मन थोड़ा सा उखड़ा हुआ था जिंदगी कभी व्यवस्थित पटरी पर नहीं रहती 
कुछ न कुछ लगा ही रहता है 
कभी लगता है सब ठीक 
अचानक फिर कोई उलझन
ऑंख बंद कर लिया था विचार उमड़ घुमड़ रहे थें
लगा सब अंधेरा है अगर ऑंख न होती तो 
मुस्कान आ गई मुख पर 
उनसे पूछो जिसने रोशनी का दीदार ही न किया हो 
इतनी खूबसूरत देन ऊपर वाले की 
जग की खूबसूरती को निहार सकते हैं 
अगर स्वास्थ शरीर और सही सलामत मिला है 
तो उस परवरदिगार का आभार 

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