जलना ही मेरा कर्म और धर्म
जलूगा तभी तो प्रकाश फैलेगा
अंधेरे में राह दिखाता हूँ
अकेले नहीं तेल - बाती के साथ जलता हूँ
सब कुछ दे देता हूँ
अपने को मिटाकर
कोई मलाल नहीं
जलन सहता हूँ
कालिख से सन जाता हूँ
घूरे में फेंक दिया जाता हूँ
यही मेरी नियति है
यह सब खुशी से करता हूँ
कितना भी तूफान हो
जलने की भरपूर कोशिश करता हूँ
बार-बार बुझता हूँ
बार-बार जलता हूँ
हार नहीं मानता
बिना स्वार्थ सबके लिए उपलब्ध
गरीब - अमीर में फर्क नहीं
महलों की शान और झोपड़ी की जान
जगमग करता जाता
यह दीया तो जलता जाता
No comments:
Post a Comment