यह तमगा आसान नहीं है
दुनिया की नजरों में घर उजाड़ने वाली
पुरुष को फंसाने वाली
वह कितनी भी काबिल क्यों न हो
सम्मान की अधिकारी नहीं हो सकती
यह समाज है
कुछ भी हो
दोषी तो औरत ही होती है
बलात्कार हुआ हो
परित्यक्ता हो
अविवाहित हो
विधवा हो
अंतरधर्मीय- अंतर्जातीय विवाह हो
बस एक पक्ष की गलती
कभी फंसा लिया
कभी मनहूस कदम कि आते ही खा गई
कभी कपड़े छोटे पहने
कभी अकेली बाहर क्यों निकली
कभी झगड़ालू इसलिए ससुराल में रह न सकी
कभी बाहर चक्कर होगा
ऐसे न जाने कितने
पुरुष बेटा , पति , ससुर, जेठ
और तो और
तोहमत लगाने में महिलाएं भी कम नहीं
गॉसिप का चर्चा भी यही
फलां की बेटी
फलां की तमाम - ढिकान
सब स्वर्ग से उतरे हुए लोग
दुध से धुला हुआ दुधिया चरित्र
तभी तो किसी का भी ये चरित्र हनन कर सकते हैं
जीना मुश्किल कर देते हैं
मनगढ़ंत कहानियां बना डालते हैं
वो भी जो आप अपने बारे में नहीं जानते
अकेली औरत को तो किसी से बात करने में भी डर
समाज बदल रहा है ??
बदतर हो रहा है
मौमबत्ती लेकर प्रतीक्षारत रहते हैं
कब मातम मनाने जाएं
कब कुटिल चर्चा को बल मिले
धिक्कार है समाज को
वह भी तब जब
सबके घरों में बहन - बेटियां है
जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आता तब तक
खुदा न खास्ता अगला शिकार आप हो
तब पीड़ा का पता चलेगा
इंसान हो तो इंसान बनो
ऊपर वाले से डरो
इतना मजा मत लो कि ईश्वर सजा देने पर ऊतारू हो जाएं
आप अपनी जिंदगी जीओ
दूसरे में दखलअंदाजी क्यों
परमात्मा हैं
समाज के हर व्यक्ति को सोचना पड़ेगा
नहीं तो दिशा और दशा दोनों बदलेगी
दोषी भी आप ही होंगे
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