मैं कहाँ सही कहाँ गलत
इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूँ
मुझे क्या करना चाहिए
क्या नहीं करना चाहिए
क्या किया
उससे भी अंजान नहीं
अंजाम भी भुगता है
कोई शिकवा - शिकायत नहीं
कर्म किया मैंने फल भी तो भुगतनी पड़ेगी मुझे
किसी और को बताने और जताने की जरूरत नहीं
अपनी जिंदगी अपने हाथ
नहीं किसी का चाहिए साथ
साथ मिला तो भी ठीक
न मिला तो भी ठीक
हर कंकरीले- पथरीले रास्तों पर चली हूँ
हर आग में तपी हूँ
फूल बिछे नहीं मिले थे राहों में
चलती रही अब भी चलना जारी है
गिरने से डर नहीं
हारने की परवाह नहीं
सब मुझे समझे यह संभव नहीं
वह क्या समझे मुझे जो इन रास्तों पर चले ही नहीं
मंजिल उनको आसानी से मिल गई
सब लोग इतने खुशनसीब नहीं होते
न कोई वरदहस्त न किसी का गुरुर
तब भी कोई गम नहीं
हम अकेले ही चले
बीच-बीच में रुक भी गए
फिर चल पड़े
ईश्वर का हाथ और साथ रहा हमेशा
तभी तो हर राह आसान होती गई
अपनी राह ही नहीं दूसरों की भी राह में उनके साथ रही
वे आगे निकल गए
हम वहीं ताकते रह गए
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