न जाने किस भेष में नारायण मिल जाय
हर अतिथि को देवोतुल्य मानना
अतिथि देवो भव - कहॉ खडा है
पानी मॉगने पर दरवाजा खोल पानी नहीं दे सकते
राह चलते किसी की मदद नहीं कर सकते
पोस्टमैन ,कडिया ,पलम्बर ,गैसवाला ,दूधवाला
दरबान और घरेलू नौकरवपर भी संदेह और अविश्वास
रेल ,बस में किसी से ज्यादा घुलना - मिलना नहीं
किसी का दिया हुआ खाना नहीं
ऐसी न जाने कितनी पॉबदियॉ
स्वयं पर और आनेवाली पीढी पर
इंसानियत पर विश्वास ही नहीं रहा
किसी पर भरोसा नहीं
फिर चाहे पडोसी हो ,रिश्तेदार हो
उस युग में तो एक ही रावण था
जो जानकी को भिक्षा के बहाने ले गया
आज तो पग -पग पर रावण है
किस - किससे बचा जाय
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Wednesday, 6 April 2016
पग -पग पर रावण - कैसे बचे??
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