अकेले ही चले थे
कांरवा चलता रहा
कुछ मिलते गए
कुछ जुड़ते गए
जिंदगी भी चलती रही
कभी कुछ बिछुडे भी
तब कुछ नए भी जुड़े
कभी कुछ बिसुरे भी
वक्त के साथ अंदाज भी बदलता गया
कभी जो अपने थे
आज पराए होने लगे
दूर जाने लगे
किस्सा क्या
कुछ समझ न आया
हम तो वही थे
हम तो बदले न थे
हाँ वक्त जरूर बदला था
यही लोगों को रास न आया
सोचने पर समझ में आया
लोग आपसे नहीं
अपनी जरूरतो से जुड़ते हैं
जहाँ जरूरत खत्म
संबंध भी खत्म
कल आपके साथ
आज किसी और के साथ
यह जीवन व्यापार है
घाटा और मुनाफे के खेल है
दोस्त और संबंध सब इसी की उपज है
इसमें घाटे का सौदा कोई नहीं करना चाहता
गलतफहमी होती है
लोग साथ है
कोई साथ नहीं
अकेले ही आए थे
अकेले ही जाना है
इस मेले को छोड़ भीड में
सबको अकेले ही जाना है
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Friday, 18 October 2019
जीवन एक मेला है
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