कैसा विचित्र है यह मन
एक जगह टिक कर रहता ही नहीं
न जाने कहाँ - कहाँ विचरण करता है
मन विचलित कर जाता है
कभी चला जाता है मुंबई
कभी महाराष्ट्र के सुदूर इलाकों में
कभी गुजरात तो कभी दिल्ली
दिल दहला देने वाली खबरों को देखने
कितने लोग मर रहे हैं
दवा के अभाव में
ऑक्सीजन के अभाव में
लाशे गंगा में बहाई जा रही है
श्मसान - शवगाह मे जगह नहीं है
करोना का कहर खत्म ही नहीं
टावते आ गया
चक्रवाती तूफान और ऑधी के साथ
न जाने कितने बेघर हो गए
कितना कुछ तहस-नहस हो गया
कल गोवा आज महाराष्ट्र
कल गुजरात परसों हरियाणा
उसके बाद कहीं और
विनाश की तांडव लीला जारी है
पता नहीं किसको - किसको अपने चपेट में लेंगा
फिर लगता है
हम केवल सोच सकते हैं
कर तो कुछ नहीं सकते
फिर भी मनुष्य तो हैं न
भावनाएं हैं विचार हैं
मन द्रवित होता है
अंजाने के दुख से भी मन परेशान होता है
यह तो नहीं कह सकते
दुनिया जाएं भाड़ में
हमें क्या पडी
हम भी इसी का हिस्सा है
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यंतु
माँ कश्चित् दुख भाग भवेत
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